Saturday, December 26, 2009

विख्यात कवि मित्रों के साथ

हरमिन्द्र पाल, श्री कृष्ण कुमार जी के साथ

Friday, December 25, 2009

शायरी की डायरी

-तुम्हारे कदमों में मेरी ज़न्नत है
ये कहकर मेरा सीना गर्व से तना था
जब ध्यान से देखा तो उसका पाँव गोबर मे सना था


- अभी तो बाल तुम्हारे छोटे - छोटे थे, अचानक कैसे बड़े हो गये
अरे शैम्पू करके आई थी, हवा चली, ये खड़े हो गये


- तेरे होठों से निकला हर शब्द दुआ बन जाये
मै पूरी क्लास का फूफा और तू उनकी बुआ बन जाये

- तीन दिन पहले उसका पति आलू लेने बाजार गया था अभी तक नही आया
और पत्नी भी इतनी आलसी कि उसने भी तीन दिन से कुछ नही पकाया


- तू अगर मर गई तो यकीनन मै भी मरुँगा
जरुरत से ज्यादा खुशी कैसे बर्दाश्त करुँगा


- मैने उससे कहा प्यार के सजदे में सर झुकाया तो महबूब की नजरो में चढ़ जायेगी
वो बोली सर झुकाया तो सर्वाइकल की प्राब्लम बढ़ जायेगी

- वो जादू जानता है तरबूज के खेत में खरबूजे खाता है
हैरान होने की जरुरत नही घर से ले जाता है

- वो लाये फूलों का गुलदस्ता, कब्र पे चढ़ा दिया
वो तो बेचारा पहले ही मिट्टी में दबा था तुमने और वजन बढ़ा दिया


- जाने क्यों वो करते अब हमारी खूबसूरती का ज़िक्र नही
अरे शादी हो गई, कहा भागेगी, अब उनको भी फिक्र नहीं
आपने तो पत्नी, टोकरी समझ के एक तरफ धर दी
आप काम पे गये और पड़ोसी ने तारीफ शुरु कर दी


१०- बाजार में हमें पीटने को सारे बंदे चिपट गये
पत्नी ने काम वाली बाई को अपनी पुरानी साड़ी दी थी
और हम उसे अपनी पत्नी समझ के पीछे से लिपट गये

११- भिखारी बोला यू हिमाकत की नज़र से ना देख
ब्यूटी क्रीम लगा के मेरा रंग भी गोरा होगा
अपने हाथ में भी एक दिन इमपोर्टेड कटोरा होगा
निकाल ज़ेब से सौ का नोट और ले ले मेरे बाप की दुआ
जा तेरे घर भी मेरे जैसा छोरा होगा


१२- वो मेरे ही सामने नदी मे डूब गई
जो
मुझे ज़ान से प्यारी थी
तैरना तो आता था मुझे, पर क्या करता
जुकाम
की बीमारी थी


१३- पहले तो हम आधी रात तक घुमा करते थे मगर
इस 'गे' संस्कृति ने वो भी छुड़वा दिया


१४- जिसे तुम करते थे जान से भी ज्यादा प्यार
वो तुम्हारे क्रेडिट कार्ड से लाखों की शाँपिंग करके हो गई फरार
अरे धोखा खाने वालो सम्भलों
अपने प्यार को ना यूं पहली नज़र में पास करो
पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो


१५-एक लड़की से मैने रोने का कारण पूछा तो वो बोली
मेरे
पिता चाइनीज थे बेचारे भरी ज़वानी मे हम सबको छोड़ कर चले गये
बस
इसी बात का गम है मैने कहा चुप हो जा बच्ची
चाइना
का माल तो चलता ही कम है

१६- धरती पे तुम, आसमाँ में तुम, पूरे जहाँ में तुम,
फिज़ाओं में तुम, घटाओं में तुम, हवाओं में तुम,
ठीक ही कहा है किसी ने
बुरी आत्मा का कोई ठिकाना नही होता

१७- दिखा बस उसका ही चेहरा, उठाया जब भी मैने ज़ाम
अरे फोटो लगी थी ग्लास पे, वो मुफ्त हुई बदनाम

१८- अब तो उसकी गली से निकलने तक का मन नही करता
उसके बच्चे हमें मामा कहकर पुकारने लगे

१९- प्रेम ही तो चारो तीर्थ धाम है,
लोग करते व्यर्थ ही बदनाम है
गोद में रखा था सर और दर्द खत्म
प्रेमिका है या फिर झंडू बाम है

२०- देसी घी दस रुपये का लेने चला भोला
डिब्बा दिखाके उसको दुकानदार था बोला
यूं घूर ना दस रुपये में क्या मुझको खायेगा
सूंघ ले वेवकूफ बस इतना ही आयेगा

२१- वैसे तो मैं उस पर बहुत मरता हूँ
जहां तक होता उसका पीछा करता हूँ
उसकी गली के कुत्तो की भी परवाह नही मुझको
सिर्फ रैबीज के इन्जेक्शनों से डरता हूँ

२२- बच्चा क्या था जीता जागता शरारतों का समन्दर था
उसकी उछल कूद से बताती है जरुर पिछले जन्म मे बन्दर था

२३- वे अनेक संस्थाओं के प्रधान है, बड़े बड़े मंचों पे जाते है
पर घर पे उनसे ज्यादा इज्जत तो उनके कुत्ते पाते है

२४- कई रात से मै सच कहूँ बिल्कुल ना सोया हूँ
तकिये में मुँह छिपा के मैं रातों में रोया हूँ
ये सुनके वो बेकार में बेहाल हो गई
मच्छर गिरा था आँख में बस लाल हो गई

२५- कोई कहे कि प्यार कर, कोई कहे अन्धकार कर
मैने कहा जो तुम्हारा दिल चाहे, पर पहले मच्छरो को मार कर

२६- मोहब्बत के दुश्मनों को गोली मरवा दो
या फिर उनकी खाल में भूसा भरवा दो
दिन रात मै बस तुम्हे ही काल किया करुँगी
पहले मेरा मोबाईल तो चार्ज़ करवा दो

२७- तेरे प्यार का मुझपर हुआ ये असर है
नौकरी तो छूट गई घर की कसर है
वो भी बिकेगा भैया , अभी क्यों रोता है
तवायफो के प्यार में ऐसा ही होता है

२८- शादी के लिए अग्रेजन हसीना से पूछा आशिक ने, आँखें चार कर
हसीना बोली अभी तो मेरा चौथा ही अफेयर है
थोड़ा इन्तज़ार कर

२९- वो कहती है ना बिछड़ेगें मरके भी हम साथिया
तो फिर खामखाह क्यों अपनी ज़ान दूँ

३०-
वो कहती है ना बिछड़ेगें मरके भी हम साथिया
अरे
तो क्या आत्माओं की भी शादी होती है

३१- भले ही ना तू प्यार दे भले ही ना दीदार दे
लगता है तू पास है मेरे, बस एक बार मिस काल ही मार दे

३२- हम तेरे शहर मे आऐ है मुसाफिर की तरह
हमको एक बार मुलाकात का मौका दे दे
प्यार करता हू तूमसे पागलों की तरह
आजा मेरे पास अपने बाप को धोखा दे दे




Saturday, August 22, 2009

प्रेम

हमारे देश में शादी का मतलब
प्रेम नहीं समझोता है
इसीलिए भारत में तलाक
बहुत कम होता है

हमारे यहाँ प्रेम सिनेमा हाल में दिखाया जाता है
जबकि विदेशो में उसे प्रैक्टिकल रूप में अपनाया जाता है
क्या आप विदेशों में होने वाले
अधिक तलाक़ के कारण को जानते हो
या फिर इसे उनके भाग्य की विडम्बना मानते हो

प्रेम, तलाक का पहला खंड है
हमारे यहाँ अरेंज मैरिज़ है
इसीलिए ये रिश्ता अखंड है
अरेंज यानि एग्रीमेंट
तसल्ली से न की अर्जेंट
तू मेरा घर संभाल
म तेरे गहनों की ज़रूरत पूरी करूँगा
तू मेरे बच्चे पाल
मे तनख्वाह तेरे हाथ पर धरूँगा
विदेशों में -
तू भी कमा, म भी कमाउंगा
तुम नाश्ता तैयार करो
म डिनर पकाउंगा
हम उनकी तरह दिल से नहीं
दिमाग से जीते है
यही फर्क है की वो काकटेल
और हम भ्श का दूध पीते है
कभी किसी ने ये नहीं पढ़ा होगा
की फलां जगह कितने लोगो ने प्रेम किया
लेकिन कितने लोगो का तलाक हुआ
ये प्रथम पृष्ठ पर पड़ता है दिखाई
क्योंकि उनका प्रेम ; प्रेम नहीं वासना है
और वासना होती है अशतही
हम तो केवल प्रभु से प्रेम करना जानते है
और केवल इसी सच्चाई को पहचानते है
जब वे इस वासनिक प्रेम को छोड़
वास्तविकता के धरातल पर आयेंगे
तब जीवन की हर राह में
खुशियाँ ही खुशियाँ पायेंगे

Friday, August 21, 2009

समय

समय बड़ा बलवान है
दुनिया का सबसे बड़ा पहलवान है

फेल हुए बच्चे से पूछा बेटा तू क्यों रोता है
बच्चा बोला तुम क्या जानो एक बरस क्या होता है

अठमासा बच्चा जन्मे जो कैसे भूल वो पायेगी
एक महीने की कीमत तो बस वो माँ बतलाएगी

एक दिवस के कीमत तुमको वो सम्पादक बतलाए
किसी वजह से जिसका अखबार एक दिवस ना छप पाए

क्या कीमत है एक घंटे की वो जाने जो प्यार करे
एक घंटा प्रियतम की खातिर पार्क में इंतजार करे

नौकरी वाली लाइन में लगकर जो बाहर हो जाएगा
एक मिनट की कीमत तुमको वो टाईपिस्ट बतलायेगा

एक सेकिंड की कीमत तुमको वो राहगीर बताएगा
सड़क पार करते हुए जो ख़ुद को संभाल गया
और एक सेकिंड के अन्तर से दुर्घटना को टाल गया

सेकिंड का सौंवा हिस्सा दिल पी टी उषा का जला गया
सेकिंड के सौंवे हिस्से से उसका ओलम्पिक का पदक चला गया

नही पकड़ सकते हैं जैसे हम पानी की धारा
बीत गया जो समय का एक पल आता नही दुबारा

कान्हा

साम दाम और दंड-भेद का केवल एक विधाता
कान्हा से कोई बड़ा हुआ ना कूटनीति का ज्ञाता

शत्रु जितने थे चुन-चुन कर सबको किया ठिकाने
राजनीति की चाल तुम्हारी कोई नही पहचाने
उठा के उंगली पर गोवर्धन अंहकार को तोडा
जिसे बनाया आपने अपना साथ ना उसका छोड़ा
चीर बढ़ाई लाज बचाई धन्य द्रोपदी माता
कान्हा से कोई बड़ा हुवा ना कूटनीति का ज्ञाता

गीता का उपदेश न देते तो अर्जुन क्या लड़ता
रन में देखे भाई - बंधु तो पाँव नहीं था बढ़ता
जब अर्जुन को युद्घभूमि में विराट रूप दिखलाया
बड़ा नही है धर्म से कोई तभी समझ में आया
वरना अपनों को अर्जुन क्या मौत की नींद सुलाता
कान्हा से कोई बड़ा हुआ ना कूटनीति का ज्ञाता

मामा कंस की सेना हो या फिर शकुनी का पासा
जो चाहा वो किया आपने देखें सभी तमाशा
गोप-गोपियों और राधा संग तुमने रास रचाए
और सुदर्शन चक्र तर्जनी पर धारण कर लाए
सिवा आपके कौन धर्म को धर्मयुद्ध जितवाता
कान्हा से कोई बड़ा हुआ न कूटनीति का ज्ञाता






Tuesday, August 11, 2009

स्वर्ण जयती

कही कोई विस्फोट ना हो इस डर ने जान निकाली,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली,

50 वर्षो में देखों हम कितना आगे आ गए,
अपने काले कारनामों से पूरी दुनिया में छा गए,
सबकों पीछे छोड़ा क्या अमरीकी क्या जापानी,
आजादी का मतलब ही होता करना मनमानी ,
स्विस बैंक ने घोटालों से भरी किताब निकाली ,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली,

आजादी का मतलब है क्या लूट की आजादी,
आजादी का मतलब है क्या झूट की आजादी,
आजादी का मतलब नही है तोड़ दो तुम उसूल,
आजादी यदि ऐसी है तो हमकों नही कबूल,
हर भ्रष्टाचारी ने गंगा मे डुबकी लगा ली,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली,

कितने चाव से हिन्दुस्तानी क्रिकेट खेल कराते है,
वो चंद सिक्कों की खातिर खुद अपना देश हराते है,
छोड़ दिया है लोगो ने अब राम नाम को जपना,
क्या ऐसे भारत का ही हमने देखा था सपना,
देशभक्ति पैसे के पीछे हो चुकी है खाली,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली,

याद करो उन वीरों को जो जान पर अपनी खेल गए,
चाहे जीतनी चली गोलियां, सीने पर वो झेल गए,
याद करों उन वीरों को जो सत्य डगर पर अड़े रहे,
आंधी और तुफानों में हमेशा डटकर खड़े रहे,
खाया किसी ने यूरिया, कोई कर रहा जुगाली,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली,

उतार फैकों अंग्रेजी का कफन जो तुमने ओढा,
फिर से गुलाम बनाएगा हमें ये कैंसर का फोड़ा,
हिन्दी अपना स्वाभिमान कभी, खो नही सकता,
चंद लोगो की भाषा देश की हो नही सकती,
लगता सभ्यता संस्कृति ने अपनी दुकान हटा ली,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली,

नाम जयंती का लेकर करोड़ो रुपया बर्बाद किया,
लेकिन क्या सच्चे दिल से किसी शहीद को याद किया,
जयंती जयंती चिल्लाना तो ढोंग आडंबर धोखा है,
लाखो करोड़ों कमाने का एक सुनहरा मौका है,
खाकर धन नेताजी ने छाती अपनी तान ली,
हमने कितने प्यार से स्वर्ण जयंती मना ली ॥

अंहिसा के पुजारी

हम पहले हमला नहीं करेंगें, हमारी सरकार इस बात पर अड़ी रही,
और सेना 10 महीने तक सीमा पर खड़ी रही,
बीच बीच में एक आध बम का गोला छोड़ते रहे,
और हमारे जवान इसे दिवाली के पूर्वाभ्यास से जोड़ते रहे,
जितने दिन हमारे सैनिक सीमा पर घेरा डाले पड़े रहे,
अमेरिका के कान खड़े रहे,

जो दिमाग से नही हथियार से लड़ता है वो नादान होता है,
और हर भारतीय स्त्री के लिए उसका पति भगवान होता है,
इसीलिए हैं जवानों के कुछ दिनों की छुटटी लेकर अपने अपने घर जाओ,
ओर करवा चौथ पर अपनी अपनी पत्नियों को दर्शन देकर आओ,
ये लड़ाई झगड़ा तो होता रहेगा, लेकिन दिवाली तो वर्ष भर का त्यौहार होता है,
और बच्चों को तो इस दिन से विशेष प्यार होता है,
तो अपने अपने बच्चों के लिए मिठाई लेकर जाओ,
और परिवार के साथ मिलकर खुशियां मनाओं,

लेकिन पाकिस्तान तू ये मत समझना, कि हम यूं ही शांत हो जाएंगे,
कुछ दिन बाद हम पूरा दम लगाकर फिर आएंगें,
लेकिन हथियार नहीं उठाएंगें,

बल्कि अपनी सेना को हथियार ना उठाने का आदेश देकर सीमा पर उतारेंगें
क्योकिं हम तो अहिंसा के पुजारी हैं, इसीलिए तुझे डरा डरा के मारेंगें,
सन 47 में जब हम जाग गये थे, अंग्रेज भी तो गांधीजी से डर कर भाग गये थे,
और इसी प्रकार यदि हमारी सेना कुछ दिनो के लिए, चीन की सीमा पर तन जाए,
तो शायद उसका हमारी जमीन वापस करने का मन बन जाए,

आखिर भारत विश्व शक्ति है, हर कोई हमसे डरता है,
और जो डरता है, वही तो मरता है,
और जो बंग्लादेशी जबरदस्ती भारत को अपने बाप की जागीर समझकर घुस आए है,
यदि उन सब बेरोजगारों को धर लें, सेना में भरती कर लें,
और उन सब को सीमा पर लिपटा दें, फिर तो वओ बंग्लादेश को खुद ही निपटा दें,
उन्ही का जूता, उन्ही के सर, सेना पर पड़ेगा ना कोई असर,
बंग्ला देश रह जाएगा दंग,
फिर नही आएंगें वहां से हमारे सैनिकों के शव अंग भंग,

यदि श्रीलंका की सीमा पर हम अपनी सेना तैनात कर दें,
तो लिटटे वाले सोचेंगे कि अब हम,
रावण के अत्याचारों से मुक्ति पा गए है,
प्रधानमंत्री के रुप में श्रीराम दुबारा अवतार लेकर आ गए है,
हमारे जहाज का अपहरण करवाने वाले नेपाल की सीमा पर,
यदि हम कुछ दिनो के लिए सेना को भेज दें,
तो उसका तो सांस ही फूल जाएगा,
और काठमाण्डू से हवाई जहाज उड़ाना ही भूल जाएगा,
फिर हम उग्रवादियों के सामने हाथ नही जोड़ेंगें,
और अजहर मसूद जैसे आतंकवादियों को,
कंधार में ले जाकर नही छोड़ेंगें,

पता नही ये सब पड़ोसी क्यो पहुँचाते हैं भारत की आत्मा को ठेस,
जबकि भारत है एक परमाणु सम्पन्न देश,
लेकिन परमाणु सिर्फ परमाणु नही है,
परमाणु है धरती का विनाश,
जापान में हो चुका इसका अभ्यास,
परमाणु है लाशों का ढेर ,
कभी ना मिटाने वाला अंधेर,
इसीलिए हमने सेना को वापस नही बुलाया है,
बल्कि दुनिया को तबाह होने से बचाया है ।।
बल्कि दुनिया को तबाह होने से बचाया है ।।

ये कश्मीर हमारा है

गूंज रहा है सारे देश में केवल आज ये नारा है
तुम्हें ना देंगे वो गददारों ये कश्मीर हमारा है,
बहुत दिनों तक ये कश्मीर खून के आंसू रोया है,
आतंकवाद के कारण अब तक एक रात ना सोया है,
मां बहनों की लूटी इज्जत बिधवा उन्हे बनाया है,
जाने कितने अत्याचार करके उन्हे सताया है,
दूर करेंगे सारे मिलकर छाया जो अंधियारा है,
तुम्हें ना देंगे वो गददारों ये कश्मीर हमारा है,

क्यो छिपते फिरते घाटी में बदल बदल कर वेशों में,
अगर ना प्यारी भारत माँ तु जाओ अरब के देशों में,
अब जो अगर एक भारतीय मारा लहू तेरा पी जाएंगे,
एक जान के बदले सौ सौ लेकर हम दिखलाएंगें,
खत्म करा दो 370 लगी जो अब तक धारा है,
तुम्हें ना देंगे वो गददारों ये कश्मीर हमारा है,

देश के ऐसे दुश्मन से तो अब ना हमें डरना होगा,
47 में हुए जो टुकड़े, उन्हे एक करना होगा,
इतिहासों में एक कहानी और जोड़ दी जाएगी,
कश्मीर की तरफ जो देखा आंख फोड़ दी जाएगी,
स्वर्ग बनाकर सब देवों से मिलकर इसे उतारा है,
तुम्हें ना देंगे वो गददारों ये कश्मीर हमारा है,

नही मिलेगा पानी तुमको, तड़प तड़प मर जाओगे,
अपनी काली करतूतों से, बाज नही जो आओगे,
रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयूग आएगा,
तू क्या जीतेगा भारत को, खुद मिटटी में मिल जाएगा,
सिर्फ धरती का स्वर्ग ना समझों निज आंखों का तारा है,
तुम्हें ना देंगे वो गददारों ये कश्मीर हमारा है ॥

चैन की सांसे लेने दो तुम गांधी के गुजरात को

दुश्मन ने बारत में आकर, जहर ये कैसा मिला दिया,
गोधरा वाली घटना ने तो, देश को पूरा हिला दिया,
और अब इन्ही दरिंदो ने तो, मन्दिर को भी ना छोड़ा,
छोटे छोटे बच्चों तक से, जीवन ने नाता तोड़ा,
ईश्वर का घर नही सुरक्षित, हम फिर इंसान है,
बच्चे बूढे मरें कोई भी, उनको लेनी जान है,

बहुत सहा है हमने अब तक, सभी हदें अब पारी हुई,
दिन पर दिन आतंकवाद की, और पैनी धार हुई,
राष्ट्रविरोधी कामयाब, हो रहे रोज अंजाम में,
खून की होली खेल गए, आतंकी अक्षरधाम में,
शायद फिर हम रोक न पाए, बहते हुए जज्बात को,
चैन की सांसे लेने दो तुम गांधी के गुजरात को,

गांधी निति पे चल के ही दूजा आगे गाल किया,
बिरयानी से भरा हुआ जो आपके आगे थाल किया,
इसीलिए तो आज हमारे सिर पर चढकर बैठ गए,
पाकिस्तानी हथियारों को लेकर हमपर ऐंठ गए,

गांधीजी का अंहिसा का सपना भी लाचार हुआ,
बंटवारे की कीमत पर भी बंद ना अत्याचार हुआ,
हमने सबको एक ही समझा और सबका ही मान किया,
तुमने देश के गौरव संसद मंदिर का निर्माण किया,

रोज अत्याचारों को हम सहते – सहते सो गए,
लगता है जैसे हम खुद भारत में शरणार्थी हो गए,
अब भी वक्त है संभल जाओं और बढने ना दो बात को,
चैन की सांसे लेने दो तुम गांधी के गुजरात को

अंत ना जाने कब होगा और घड़ा पाप का फूटेगा,
आखिर कब तक सहते जाएं बाँध सब्र का टूटेगा,
ना समझे जो प्यार की भाषा उसे काट कर दूर करों,
देश है दुर्गा काली का ये, मत इतना मजबूर करो,
छोड़ दो सारे कुकर्मो को आत्मा अपनी शुद्ध करो,
एक बार फिर वरना आकर सीमा पर तुम युद्ध करो,

लात के तुम भूत सदा ही, बातों से कब मानोगे,
लाहौर इस्लामाबाद को, खो दोगे तब जानोगे,
सैनिको की कुर्बानी भी रंग नया दिखलाएगी,
जीत लेंगे इस बार जमीं जो भारत में मिल जाएगी,
रहो जमीं पर इंसान बन के भूल जाओ तुम घात को,
चैन की सांसे लेने दो तुम गांधी गुजरात को

जब तक चुप है लेकिन खुन अगर ये खौल गया,
जड़ से काट गिराएंगे अगर जो संयम ये डोल गया,
कभी ना भर सकते तो ऐसे जख्म दिलों पर छोड़ दिए,
वैष्णो देवी जाने वाली, बस तक में बम फोड़ दिए,
उग्रवाद अब नहीं सहेंगे, सुनते सुनते हार गए,
नेताओ के सारे भाषण, बार-बार बेकार गए,

चाहे जितना भी समझा लो असर नही हो पाएगा,
जब तक उग्रवादियों को ना, चौंक पे काटा जाएगा,
तख्ता पलट, पलट करके ही, तुमको है ये तख्त मिले,
देख लो परमाणु आजमाकर शायद फिर ना वक्त मिले,
भूल चुके हो अब तक सन 71 वाली लात को,
चैन की सांसे लेने दो तुम गांधी के गुजरात को ॥

जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान

सालों साल पुराना किस्सा, सुन ले ओ नादान,
जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान,
ये गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान ॥

बिन लादेन को तूने लादा, बना के उसको एक प्यादा,
काबुल हुआ काबू से बाहर, बन बैठा वो सबका दादा,
खुद का घर जब जलने लगा, तब फिर हाथ क्यूं मलने लगें,
अब तलिबान क्यूं खलने लगा, युद्ध की राह पे चलने लगा,
आतंकवाद की खान है वो कैसे कहें अफगान ,
जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान,

जहां अंधेरा ना होता, जहां पे मानव ना सोता,
बिल्डिंग नीचे आई है, सुरक्षा धता बताई है,
मानव लाश का ढेर लगा, चांदन को अंधेर लगा,
सब्र का प्याला भर ही गया, पानी सर से गुजर गया,
मेरा काम नहीं ये कहकर कैसे बचे शैतान,
जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान,

लोग हजारों जिसने मारे, मानव नहीं कसाई है,
बिल्डिंग नही गिराई उसने अपनी मौत बुलाई है,
अंत करें अब आओं मिलकर आतंकवाद के कोनो का,
धूल में भले मिला दे हम दुश्मन एक है दोनो का,
काश्मीर कोई नही खिलौना कर दें जिसको दान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

दुश्मन सोचा करता था कि भारत पड़ा अकेला है ,
अब तुम समझो आंतकवाद को कैसे हमने झेला है,
दस सालों में मानवता को तिल-तिल मरते देखा है,
लगता था कि आतंकवाद के घर की सीमा रेखा है,
दुश्मन अब तो बच नही सकता दिल लिया ठान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

अब विमान कंधार खड़ा था सप्ताह भर सदमें में रहे,
दर्द अकेले सहा था हमने, दो शब्द किसी ने नही कहें,
अमरीका पर हुआ जो हमला पूरी दुनिया खड़ी हुई,
उग्रवादियों को छोड़ने की हमकों आदत पड़ी हुई,
रुबिया कांड में भूल हुई थी हम निकले नादान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

जिसको तुमने चाकू समझा जहर बुझा वो भला था,
जिस लादेन को ढूंढ रहा है तूने ही तो पाला था,
मेरी बिल्ली मुझे म्याऊँ करके जैसे जाती है,
अंत बुरे का बुरा ही होता तुझे समझ अब आती है,
पैंटागन की सबने देखी खत्म हो गयी शान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

हाथ पसारे दो रोटी के, लिए नजर जो आता है,
हिम्मत देखो विश्व के दादा को भी आँख दिखाता है,
विश्व नाश आतंकवाद का सपना पड़ा अधूरा है,
लगता है अब तालिबान का समय हो गया पूरा है,
जननी जन्म भूमि का कोई कैसे सहे अपमान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

एक दशक से कश्मीर में आतंकवाद का पहरा था,
हम चिल्लाते रहते थे पर, बना तू गूंगा बहरा था,
साथ मांग रहा तू जिसका, वही बिमारी की जड़ है,
गंगा उसमें चले ढूंढने जो नाली का कीचड़ है,
जब तक पाक है ख्त्म ना होगी आतंकवाद की तान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

लाखो मारे जाने पर पड़ता अपने फर्क़ नहीं,
और अहिंसा परमो धर्म इसके सिवा कोई तर्क नही,
सेना के हम हाथ बांधकर आतंकवाद को रोते है,
जुल्म करे या जुल्म सहे जो दोनो दोषी होते है,
वरना सफल ये हो नही सकता उग्रवाद का प्लान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

पाक एवं तालिबान एक है और दोनो की एक आत्मा,
आतंकवाद से छुटेगा पीछा दोनो का जब होगा खात्मा,
पाक दुध का धुला समझना होगी तेरी भयंकर भूल,
एक ही तड़पाएगा फिर ये, चुभा चुभा के तुझको शूल,
आज साथ लिया जो उसका कल काटेगा तेरे कान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

पाक था साथी तलिबान का मौका देखा बदल गया,
बात चली कर्जे माफी की देखो कैसे फिसल गया,
तख्ता रोज पलटते हैं ये आत्मा इनकी मरी हुई,
गददारी इनकी नस-नस में कूट-कूट कर भरी हुई ,
इतिहास गवाही देता है, ये बाप की ले ले जान,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

आओ बुला ले पार्थ का, त्याग दे अपने स्वार्थ को,
दुश्मन नही है अमरीका के, भाई ही समझों भारत को,
दुश्मन की छाती पे चढें, आओं मिलकर युद्ध लड़े,
आतंकवाद की काट जड़े, विश्व शान्ति की ओर बढे,
साथ रहा जो भारत के होगा उसका कल्याण,
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान,

आज तिरंगा करगिल घाटी में फिर से लहराया है

आज तिरंगा करगिल घाटी में फिर से लहराया है
हिन्दु मुस्लिम सिख इसाई, सभी धर्म है यहां बसते,
जो कि देश की खातिर जां भी, दे सकते हंसते हंसते,
घर की बात को छोड़ो, चाहे जितना भी लड़ जाएंगे ,
आंच देश पर आएगी तो, मिलकर उसे बुझाएंगे,
अपने कदमों पर दुश्मन का, शीश सदा झुअकवाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

हमने गोली कभी पीठ पर, मारी है ना खाई है,
अपने अटल इरादों से, दुश्मन को धूल चटाई है,
हम वो कायर नही, साथियों के शव को जो छोड़ चले,
मतलब निकल गया है, तो फिर अपनो से मुख मोड़ चलें,
किस किताब ने जाने तुमको, गंदा पाठ लिखाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

कुत्ते की जो पूंछ हो टेढी, सीधी कभी ना हो सकती,
एक इंच भी भूमि अब तो, भारत मां ना खो सकती,
वीर जवानों ने दुश्मन को, हटने पर मजबूर किया,
वीर सपूतों ने घमण्ड, दुश्मन का चकनाचूर किया,
हर जवान ने अपना लहू, पानी की तरह बहाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

चाहे लात लगें कितनी भी, सुधरे कभी शैतान नही,
सामने आकर ले ले टक्कर, तुझमें इतनी जान नही,
गैरा के कंधो पर जो, बंदूक धरे वो डरता है,
गीदड़ की जब मौत आए, शहरों को दौड़ा करता है,
वक्त पड़ें तो अंगारे, वरना ठंडी छाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

दोस्त समझकर स्वर्ण जयंती, वाली बस भिजवाई थी,
पिछले युद्धों वाली बातें, हमसे सभी भुलाई थी,
लेकिन गद्दारी करके क्यूं, छुरा पीठ में घोप दिया,
करगिल में घुसपैठ कराके, युद्ध ये हम पर थोप दिया,
दुश्मन उपर हम थे नीचे, फिर भी नाच नचाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

हम चाहते तो दो दिन में, नानी याद दिला देते ,
हम चाहते तो दो दिन मे, हार का घूंट पिलाअ देते,
लेकिन वीर जवानों ने ना, मर्यादा को भंग किया,
हमने अपनी सीमा में, रहकर दुश्मन से जंग किया,
मार भगाया दुश्मन को, फिर विजय गीत ये गाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

साथ पड़ोसी कैसे रहते, ये भी तुझे तमीज नही,
क्यूं तेरे इतिहास में बोलो, वफा नाम की चीज नही,
कोई तुझको भाई समझे, तू ना इसके लायक है,
आपस में लड़वाने वाला, तू असली खलनायक है,
लाखों कुर्बानी दे कर के, मां का कर्ज चुकाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

पृथ्वीराज चौहान का, इतिहास नहीं दोहारएंगें,
चार बार तो माफ किया है, और नही कर पाएंगे,
सीमा पर जो आंख गड़ाई, क्च्चा ही खा जाएंगे,
चांद सितारे तुझको प्यारे, वही तुझे पहुचाएंगे,
हमने जहन्नुम का रास्ता, दुश्मन को सदा दिखया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

बलिदान देश को देकर के, जो वीर स्वर्ग के द्वार गए,
लेकिन हम समझौतों में, हर बार जीत के हार गए,
किन्तु कोई भी समझौता तो, होगा अब मंजूर नही,
सीमा ही जब मिट जाएगी, समझों दिन वो दूर नही,
समझौतों के चक्कर में ही, हमने लाल गंवाया है,
आज तिरंगा करगिल घाटी, में फिर से लहराया है ॥

जनसंख्या घटाने के उपाय

मंत्री बोले रसिक जी, जनंख्या घटाने का कोई उपाय बताओं,
मैने कहा कि दिल्ली की तरह, बाकी राज्यों में भी ब्लू लाइन बसें चलवाओं
जिस- जिस को ब्लू लाइन वाले स्वर्ग पहुचायेंगे,
उनके बच्चे अनाथ हो जाएंगें,
और जब उनकी काया दो वक्त की रोटी को तरस जाएगी,
तो आप ही बताओं मंत्रीजी क्या जनसंख्या में कमी नही आयेगी,
जनसंख्या घटाने का इससे बढिया उपाय नही पाओगे,
और एक लाख रुपये परमिट के हिसब से आप भी करोड़पति हो जाओगे,

अब मेरा दूसरा उपाय भी अपना लो, जितनी जनसंख्या घटा सकते हो घटा लो,
हर साल बजट में जितनी महंगाई बढा सकते हो बढाओं,
खुद भी खाओ उद्योगपतियों को भी खिलाओं,
और जब जनता खुले बाजार से आटा, चावल, चीनी, मंहगे दामों में नही खरीद पाएगी,
तो खुद ही भूख से मर जाएगी, और तुम्हारी नेतागिरि पर आंच भी नही आयेगी,

इसके लिए आप भी अपने सुझाव दे सकते हो,
और पूर्व वित्तमंत्रियों का सहयोग ले सकते हो,
जिन्हे उनकी विशेष प्रतिभाओं के कारण सभी पहचानते है,
और महंगाई बढाने के मामले में तो विशेषज्ञ मानते है,
वो कहते है हमें कर्जा लेने का शौक नही हैं,
और वैसे भी कर्जा लेने पर कोई रोक नही है,
पैसा तो देश के काम आएगा,
इसी बहाने कर्जा देने वाले देश की, औकात का पता चल जाएगा ॥
इसके लिए यदि हमें कटोरा लेकर विदेशों में भीख मांगने जाना पडा तो जाएंगें,
और संसार के हर देश की औकात का पता लगाएंगें,

अब आपको अपने समाज की एक और कुरीति की झलक दिखाता हूं
और जनसंख्या घाटाने का तीसरा फार्मुला बताता हूं,
दहेज हत्याओं के सभी दोषियों को मुक्त करवाओं,
और ऐसे सभी लोगो को जोड़कर एक संस्था बनाओं,


यह संस्था आपकों पूर्ण दहेज लेने का अधिकार दिलाएगी,
और बहुओं को जलाने के नये-नये आसान तरीके सिखायगी,
एक बहु जलाने पर आप इस संस्था के सदस्य हो जायेंगे
और इसके माध्यम से आप भरपूर दहेज पाएंगे,

लड़के वाले जानते है कि दहेज हत्या का
थाने में पच्चीस प्रतीशत का कायदा है,
अरे पिचहत्तर प्रतिशत का तो फिर भि फायदा है,
और अबकि बार हम रंग रुप के चक्कर में नही आएंगें,
जो ज्यादा दहेज दे सके उसी को लाएंगे,

वैसे भी रंग रुप ज्यादा दिन काम नही आएगा,
साल दो साल बाद वो भी दहेज की भेंट चढ जाएगा ,
और लड़की वाले जब अपनी बेटी को और दहेज नही दे पाएंगे,
तो बेबस होकर रह जाएंगे,

और एक दिन उनके पैरो के नीचे से जमीन निकल जाएगी,
जब उनकी मासूम बेटी के जलने की खबर आएगी,
और इस प्रकार जब बहू मां बनने से पहले ही जलाई जाएगी,
तो जनसंख्या घटती जाएगी, जनसंख्या घटती जाएगी ॥

हिन्दी पखवाड़ा

चले गये अंग्रेज यहां से, अग्रेजी को छोड़ गए,
लाखो वर्षो की संस्कृति, कुछ वर्षो में मोड़ गए,
हिन्दी को तो भूला रहे, अग्रेजी पीठ पर लादी है,
भाषा की जब रही गुलामी, कैसे कहे आजादी है,
गुलामी की जंजिरों को, सही अर्थो मे तोड़ दिखाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

देश गुलामी के कारणो मे, भाषा भी एक कारण है,
स्वभाषा को अपनाना ही, इसका सही निवारण है,
गैरो के जो चाटे तलवे, मिटटी में मिल जाता है,
मान न दे जो निजभाषा को, वो मूर्ख कहलाता है,
हिन्दी अपने देश का गौरव, इसको पूरा मान दिलाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

अंग्रेजी में एक ही SUN है, हिन्दी सौ सौ सूर्य उगाती,
फिर भी जनता इस हिन्दी को, अपनाने में क्यों सकुचाती,
भाषाएं तो सारी सुन्दर, हिन्दी सबकी रानी है,
नई नवेली दुल्हन नहीं ये, वर्षो वर्ष पुरानी है,
हिन्दी से है शान राष्ट्र की, जन जन में इसकों फैलाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

देखे तो पखवाड़े भीतर नये – नये, गुल क्या खिंल जाएंगे,
क्या उददेश्य हिन्दी के इतनी, आसानी से मिल जाएंगे,
अंग्रेजी का कभी-किसी ने, पखवाड़ा मनते देखा है,
हिन्दी के आगे ये कैसी, खिंची हुई लक्ष्मण रेखा है,
हिन्दी के आगे से अब ये, लक्ष्मण रेखा दूर हटाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

भूल ना जाए जिन चीजों को, उनका ही मनता पखवाड़ा,
दक्षिण भारत में खूद हिन्दी, राजनीति का बना अखाड़ा,
जब सरकार चाहेगी मन से, तो ये मुश्किल काम नही है,
पुण्य काम है ये तो ऐसा, जिसका कि कोई दाम नही है,
हिन्दी अपनी पावन गंगा, सब मिल गोता खूब लगाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

ना जाने भारत में अपने, हिन्दी नव सम्वत कब आता,
कितने है अंजान कि हमको, यह पता भी चल नही पाता,
लेकिन न्यू इयर की तैयारी, हफ्तों पहले हो जाती है,
इसलिए तो हिन्दी अपने , देश में खुद ही खो जाती है,
हिन्दी को अपना कर के तुम, स्वाभिमान से शीश उठाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

आओ हिन्दी को हम पूजें, ये है अपने तीर्थ जैसी,
जो दिल के भीतर से निकले, नही अन्य कोई भी ऐसी,
इस भारत में रह कर के भी, जो ना इसका मान करेगा,
सच मानों ईश्वर भी उसको, नहीं क्षमा का दान करेगा,
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण, हिन्दी का प्रसार बढाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

पंद्रह दिन तक हम हिन्दी के, प्रयोगों का ढोंग रचाते,
उसके बाद में अपने हाथों, खुद हिन्दी की चिता जलाते,
दिल से हमारे इस अंग्रेजी, का जाने कब भूत भगेगा,
जाने कब हिन्दी के प्रति, दिल में स्वाभिमान जगेगा,
अगर जो अपनाना चाहते हो, दिल से हिन्दी को अपनाओं,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

आप बोलचाल की भाषा, जब बोलो हिन्दी में बोलो,
हिन्दी तो कई गुना है भारी, जब चाहो तराजू में तोलो,
जिंदा पिता को डैड कहे जो, वह संस्कृति नही हमारी,
नत मस्तक हिन्दी के आगे, हमको प्राणों से भी प्यारी,
विरोध करें जो हिन्दी का तो, उसको सूली पर लटकाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

अग्रेजी को छोड दिया तो, क्या फिर बगिया नही खिलेगी,
अग्रेजी को भूल गए तो फिर रोटी नही मिलेगी,
सरकारी जो काम को देखे, तो फिर हमकों लगता ऐसे,
अंग्रेजी को हटा दिया तो, प्राण निकल जाएंगे जैसे,
देश से अग्रेजी भाषा का, मिलकर अब तो कलंक मिटाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ,

हिन्दी है गागर में सागर, जोश नया एक भर देती है,
हिन्दी में शक्ति हैं इतनी, विष को अमृत कत देती है,
हिन्दी ब्रह्मा, हिन्दी विष्णु, हिन्दी ही शिव का त्रिशुल है,
हिन्दी अवतार राम का , कभी ना जाना इसको भूल,
हिन्दी अपनी भारत माता, सब मिल श्रद्धा सुमन चढाओ,
पखवाड़े से कुछ ना होगा, हिन्दी पूरे वर्ष मनाओ

मदिरा की होम डिलिवरी

सरकार दे रही है अब, पानी बचाओ के बाद समय बचाओ का नारा,
यानि ठेकों की लम्बी – लम्बी लाइनों से छुटकारा,
घर – घर शराब पहुँचने से शराबियों की तबियत खिलने लगेगी,
और पुलिस को भी कुछ राहत मिलने लगेगी,
अब पुलिस को किसी शराबी को गटर से निकालकर हस्पताल नही पहुँचाना है,
क्योकि उसे तो घर में ही पीनी है और वही लुढक जाना है,
और उसके लुढकने के बाद उसके बच्चे उस बची हुई अमृतधारा का स्वाद उठायेंगे,
और इस प्रकार पिता – पुत्र एक दिन, एक ही घर में एक ही छत के नीचे,
जाम से जाम टकरायेगें,
और इस प्रकार खत्म हो जायेगें, पिता पुत्र के रिश्ते, छोटे बड़े की दूरी,
एक दूसरे का सम्मान,
घर, घर नही रहेगा, रह जायेगा सिर्फ ईट पत्थर का एक मकान,
घर नही रहेगा, बन जायेगा एक शमशान ।।
घर नही रहेगा, बन जायेगा एक शमशान ।।

पत्थर

मैं एक पत्थर हूं, मानव जन्म से ही मेरा गहरा नाता है,
और मेरा नाम लेने पर हर कोई थर – थर कांप जाता है
दंगा फसाद हड़ताल में मुझे विशेष इज्जत मिलती है,
और मुझे इस्तेमाल करने से ही दंगाइयों की तबियत खिलती है,

मक्का में शैतान को पत्थर मारने के लिए,
सारी दुनिया से, लाखों लोग, करोड़ों खर्च करके आते है,
और मेरे माध्यम से सदियों पुरानी परम्परा निभाते है,
विश्व का आठवां आश्चर्य, जिस पर दुनिया करती है नाज,
मेरा ही मार्बल का रुप, तराश दिया तो दूध में नहाया हुआ ताज,

हसीनाएं कहती है कोई पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को,
क्या मै रह गया हूँ सिर्फ मजनुओं का खून बहाने को,
मुझे इस्तेमाल करों सिर्फ मानवता के लिए,
जैसे सर छुपाने को, कोई घर बनाने को,

सुना है कि जब किसी की अक्ल पर, पत्थर पड़ जाते है,
तो उनमें से कुछ नेता तो कुछ मंत्री बन जाते है,
मानव वैज्ञानिक बनकर चांद तक भी होकर आया है,
लेकिन वहां से भी सिर्फ मेरे ही, कुछ नमूने लाया है
मैं तुच्छ होते हुए भी नदी के प्रचंड बेग का मुकाबला कर लेता हूँ,
और कई बार तो घिस – घिस कर स्वयं ही शिवलिंग का रुप धर लेता हूँ,
मै कितनी ही बार किसी शिल्पी के प्रेम में वशीभूत होकर,
उसकी छैनी हथौड़ी की मार सह जाता हूँ,
और एक मूर्ति के रुप में प्रकट होकर,
किसी देव की अनकही कहानी कह जाता हूँ,

मै किसी बड़े से बड़े शीशे के घमंड को,
अपने छोटे से टुकड़े द्वारा पल भर में चूर कर सकता हूँ
और कभी ग्रेनाइट पालिश द्वारा,
खुद शीशे का रुप धर सकता हूँ

जिस प्रकार घर बनाने वाले खुद बेघर हो जाते है,
लेकिन उन घरों के नीचे उनका खून पसीना गड़ा होता है,
उसी प्रकार नींव का पत्थर खुद नजर नही आता,
लेकिन पूरा भवन उसी नींव के पत्थर पर खड़ा होता है,

चाहे कितनी ही ढलान हो मै बस, ट्रक, कार कई ओट बन जाता हूँ,
और अपनी छाती पर टनों वजन हंसतें – हंसतें, सह जाता हूँ,
इतना करने पर भी मानव तुम ना जाने किस हवा में बहते हो,
मेरा कलेजा तो तब फटता है, जब तुम किसी को पत्थर दिल इंसान कहते हो,

जब कोई मुझे राह में फेंक दे, तो भी ठोकर खाने वाला मुझे ही गालियाँ देता है,
लेकिन पत्थर होते हुए भी मेरा दिल, इंसान की तरह किसी से बदला नही लेता है,
कुछ ऐसे भी है जो ठोकर खाकर, मुझे वही छोड़, बार – बार ठोकर खाते है,
ऐसे इंसान जीवन में सिर्फ हाथ मलकर रह जाते है,

राह में यूं पत्थर छोड़ जाने के पीछे कोई तर्क होना चाहिए,
अरे इंसान और जानवर में कुछ तो फर्क होना चाहिए,
जब कोई सड़क बनाने वाला मुझ पर हथौड़ा बजाता है चोट करता है,
मै तब भी अपना धर्म नही छोड़ता,
खुद टूट जाता हूँ, लेकिन तोड़ने वाले का दिल नही तोड़ता,

पत्थरों के बिना नल-नील लंका जाने के लिए पुल कैसे बनाते,
और बिना पुल बने श्रीराम लंका पर विजय की खुशी कैसे मनाते,
इसी प्रकार जब कोई अनोखा काम करके दिखाता है,
तो वो मील्का पत्थर कहलाता है ॥

बोतल

बोतल तो आदमी का, जन्म से ना छोड़े पीछा,
बोतल का दूध पीके, शिशु मुस्कुराएगा,
कोका कोला, पैप्सी को, जवानी में पीते रहों,
बुढापे में ग्लूकोज, खून चढवाएगा,
सच-झूठ बोल-बोल, जीवन में विष घोल,
हरे-हरे नोटो से, तू घर को सजाएगा,
साल भर देर रात, सातों दिन काम करों,
धन मिल जाए, तन-मन मर जाएगा । ।

मौसम खुशगवार हो या हो फिर गमगीन,
जन्म मरण के बीच तक सब बोतल आधीन,
पहली बोतल जन्म सaमय ही शिशु भाग्य में आती,
शिशु स्तनपान से माता जाने क्यूं घबराती,
जबकि मां का दूध ही केवल पौष्टिकता है लाता,
हष्ट – पुष्ट बनता है शिशु कब समझेगी माता,
दूसरी बोतल बिसलेरी की, दूध से महंगा पानी,
प्याऊ, सुराही या फिर मटका लगती एक कहानी,

खेलकूद की उम्र में देखो, बचपन आज तरसता,
पानी की बोतल और संग में खुद से भारी बस्ता,
बन्द करो अब हिन्दवासियों खुद पर अत्याचार,
जंक – फूड से सेहत का हम करते बंटाधार,
दूध, दही फिर से अपनाएं छोड़े काफी चाय,
तीसरी बोतल कोल्ड ड्रिंक को कर दें बाय-बाय,
चौथी बोतल करे ग्रहण, जीवन में ग्रहण लगाएं,
बीयर पीऐ दुनिया को, जौं का पानी बतलाएं,

पाँचवी बोतल झगड़ो की जड़, कहते जिसकों व्हिस्की,
फेफड़े सारे गल जाते है लाइफ होती रिस्की,
जो इन पांच बोतलों को जीवन में अपनाता,
छठवी बोतल बुढापे में ग्लूकोज चढवाता,
अंत समय में बोतल फिर तो हस्पताल पहुंचाती,
सातवी खून की बोतल चढती प्रभु की याद दिलाती,
कहे रसिक रत्नेश की देह जब प्राण छोड़कर जाती,
आंठवी बोतल गंगाजल से ही मुक्ति मिल पाती,

एक – एक करके बोतल के तुम जलवे गिन लो आठ,
देख बोतल के ठाठ भैया, देख बोतल के ठाठ,
प्रण करें कि आज से हम बोतल का नाम ना लेगें,
आने वाली पीढी को एक नयी दिशा हम देगें,
बोतल मानव की दुश्मन है, इसको दूर भगाओ,
गौरवशाली, भारतवाली, संस्कृति अपनाओ ॥

शहीद

जिनके दम पर आज तिरंगा शान स्से यूँ लहाराया है,
जब भी मिले शाहीद ख्वाब में हमने रोता पाया है,
चमन तुम्हारे किया हवाले मुस्काते यूँ चले गए,
हमने देख पसीना तेरा, अपना लहू बहाया है,
जब भी मिले शहीद ख्वाब में हमने रोता पाया है,

अपनी करनी का हम को तो, रत्ती भर भी रज नही,
खुद कांटे छांटे है हमने, फूलों को ठुकराया है,
नाम हमारा वो लेकर के मंत्री पद तक जा पहूँचे,
हदें तोड़ दी तुमने सारी, मां का दूध लरजाया है,
जब भी मिले शहीद ख्वाब में हमने रोता पाया है,


कायर बन के कही दुबक के, हम भी तो सो सकते थे,
हमने दर्द धूप का झेला, मिली तुम्हे तब छाया है,
आजादी के सिवा ना कुछ भी जीवन में चाहा हमने,
जन-गण-मन और वन्दे मातरम गीत यही बस गाया है,
जब भी मिले शहीद ख्वाब में हमने रोता पाया है,

चित्र स्मारक या फिर बुत को शहद लगा क्या चाटेंगें,
परिवार ने कई कई दिन तक दाना एक ना खाया है,
जिनके दम पर आज तिरंगा शान से यूँ लहराया है,
जब भी मिले शहीद ख्वाब में हमने रोता पाया है ॥
जब भी मिले शहीद ख्वाब में हमने रोता पाया है

गांधी

जिधर भी देखो हिंसा—हिंसा, हिंसा की चली है आंधी,
लेकर के अवतार धरा पर, आ जा रे तू फिर से गांधी,
पूर्व हिंसा पश्चिम हिंसा, उतार हिंसा, दक्षिण हिंसा,
बाकी तो सब कुछ है, मंहगा, सस्ता केवल हुआ है इंसा,

हिंसा के इस दौर में बापू बोलो हम कैसे जी पाए,
दूजा गाल तो कर दें आगे, तीजा फिर कहां से लाएं,
भ्रष्टाचार की जड़े है गहरी, अपराधियों की हुई है चांदी
लेकर के अवतार धरा पर, आ जा रे तू फिर से गांधी,

मानव आज मशीन बना है, नक्शा बदल गया है घर का,
केवल संग्रहालय की शोभा, अब तेरे भारत में चरखा,
सोने चांदी के सिक्कों में, मानवता तोली जाती है,
अब तो केवल गोलियों वाली, भाषा ही बोली जाती है,
गांधी तेरा भारत छोड़ो, याद हमें है मार्च डांडी,
लेकर के अवतार धरा पर, आ जा रे तू फिर से गांधी ।।

मंचीय चुटकुले

हमने एक दुकान पर विज्ञापन पढा कि,
हर प्रकार के मंचीय चुटकुलों के लिए आइए,
सौ रुपये प्रति चुटकुला ले जाइए,
तालियां ना बजने पर रुपये वापस की गरंटी,
बीस प्रतिशत स्पेशल फैस्टीवल डिस्काउंट,
दस चुटकले लेने पर एक चुटकुला फ्री,

मैने कहा भैया, चुटकुले लिखने का काम तो बड़ा सीधा सादा है,
फिर इसकी किमत क्यूं इतनी ज्यादा है,
वो बोला भाई साहब आजकल हमारा धंधा खूब पल रहा है,
चुटकलों पर भी रोजमर्रा की चीजों की तरह भारी ब्लैक चल रहा है,
सैकड़ो की तादात में कवि आते है, और चुटकुलें ले जाते है,
वो इन चुटकुलों स्से सैकड़ो मंचों पर, हजारों के हिसाब से लाखों कमाते है,
तो उन्हे सौ रुपये मे भी सस्ते नजर आते है,
हमारा एक-एक चुटकुला साल भर, अनेक मंचों पर खूब पिलेगा
सौ लगाकर लाखों कमाने का इअससे बढिया बिजनेस, तुम्हे कही नही मिलेगा,

इसलिए रसिक भाई तुम भी यही करों
महंगाई के इस दौर में दो चार चुटकुले ले जाकर,
खुद का और बाल बच्चो का पेट भरों,
इसलिए कविता छोड़ो, चुटकुलों से नाता जोड़ो,

मैने कहा भैया
एक रुपये के अखबार में तो,
दस बारह चुटकले पढने का मजा आता है,
अगर मांग कर पढों तो वो रुपया भी बच जाता है,

वो बोला भाई साहब, हमारे ये चुटकले तुम्हे जो साधारण नजर आते है,
वास्तव में बड़े बड़े कवि सम्मेलनों की शोभा बढाते है,
देश के कोने कोने में कवियों के माध्यम से जाते है,
और हजारों की संख्या में तालियाँ बजवाते है,
आज ताली ही कविता की शान है,
जितनी ज्यादा ताली उतनी ही कविता में जान है,
तालियां आज कविता की क्वालिटी की छवि है,
जितनी ज्यादा तालियां उतना बड़ा कवि है,

भला साहित्य से भी कभी किसी का पेट भरा है,
इतिहास खोल कर देख लो,
साहित्यकार हमेषा भूखा मरा है,
मगर खुद मर के भी भूखे, की साहित्य की सेवा,
आभावों में जिया मिली नही कभी मेवा,

फैलाओ साहित्य सृजन से कवियों, पुरी दुनियां में तुम ज्योति,
चुटकले चुटकले ही होते है, कभी कविता नही होती,
तभी मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आई,
हे चुटकले बेचने वाले भाई, कहा तो तुने बिल्कुल सही है,
दुनिया का दस्तुर यही है, जीते इंसान रोटी के लिए तरसता है,
और मरने के बाद, उसकी चिता पर देशी घी बरसता है
और मरने के बाद, उसकी चिता पर देशी घी बरसता है

बस ड्राईवर

जब तुम अपने परिवार के साथ दिवाली मना रहे थे,
तो हम सड़कों पर बस चला रहे थे,
जरा सोचों, यदि हम भी अपने बच्चो के मोह माया में फँस जाते,
तो तुम जैसे हजारों लोग अपने परिवार से कैसे मिल पाते,
क्योंकि हिन्दुस्तान में सभी इतने अमीर नही,
जो अपना वाहन रखते है, फाइव स्टार में खाते है,
कुछ ऐसे भी है जो बस का किराया भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते है,

होली पर सभी पीकर मस्त,
पर मै उस दिन भी ड्राई यानि सूखा रहता हूँ,
शायद इसीलिए खुद को ड्राईवर कहता हूँ ॥

मोबाइल

मोबाइल वो डिबिया है संदेश जहां पर आते है
उसको संग में रखने वाले मान यहाँ पर पाते है
राज छिपाने की खातिर ये बनी आज मजबूरी है
इस मोबाइल के कारण ही घटती जाती दूरी है
पूरे विश्व के जिस कोने में भी अब मानव जाता है
एक यही मोबाइल है जो उसे ढूंढ दिखलाता है
बाथरुम तक जा पहुँचा है मोबाइल केक्या कहने
इसके आगे सब फीके है चांदी सोने के गहने
उस मोबाइल के रखने को मेरा दिल भी करता है
लेकिन दिल तो मोबाइल के बिल से केवल डरता है
बिन मोबाइल लगता जैसे जीवन सूनी फाइल है
रिक्शा वाला घूम रहा है लेकर आज मोबाइल है
जब भी कोई किसी बैंक में ॠण लेने को आता है
सबसे पहले मोबाइल का नम्बर पूछा जाता है
जो ना हो मोबाइल नम्बर धक्के मारे जाते है
लौट के बुद्ध बिना काम ही वापस घर को आते है
मोबाइल रखने वाले झूठा भी सच्चा होता है
मोबाइल वाले कवियों का दर्जा ही उठ जाता है
छोटे – मोटे कवि सम्मेलन में जाना छूट जाता है
मै भी तो लालायित हूँ मोबाइल अमृत पीने को
मुझको भी चाहिए मोबाइल शीश उठाकर जीने को
मोबाइल वाले चेहरों पर फैली आज स्माईल है
रिक्शा वाला घूम रहा है लेकर आज मोबाइल है॥

सपेरा

एक बार एक सपेरा सड़क पर
जहरीले सांपो के बीच दिखा रहा था कमाल्।
यानि वही पापी पेट का सवाल ।
लोग उसकी बहादुरी पर
रुपया, अठन्नी, चवन्नी, दे रहे थे।
और सस्ते में ही खेल का मजा ले रहे थे।
और वो सपेरा उन जहरीले सांपो को
कभी गले में, कभी बांहो में लेकर घूम रहा था।
और मौत के उन सौदागरों को
महबूबा की तरह चूम रहा था ।
कि अचानक उसके चेहरे पर
मौत का साया मंडराने लगा।
और उसकी ये हालत देखकर
मुझे उस पर बड़ा तरस आने लगा ।
मैने पूछा हे सपेरे भाई।
क्या तुम्हें किसी जहरीले साप ने काट खाया है।
जो तु इत्तना अधिक घबरा रहा है।
वो बोला नहीं बाबु वो सामने से
पुलिस वाला डंडा लिए आ रहा है।

ज्योतिषी

पी॰ एम॰ की पत्नी पी॰ एम॰ से बोली
ओ मेरे हमजोली
आप कितने दिन तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर टिक पाएं
आओ अपने एक अच्छे परिचित ज्योतिष से पूछ कर आएं
वह 100 प्रतिशत सत्य बताता है
उसकी बात में कभी कोई फर्क नही आता है
वह रहता भी हमारे बंगले के साथ में है
पी॰ एम॰ बोले, कोई फायदा नहीं
अरे मेरा भविष्य तो मैडम के हाथ में है ।

नेता

पहन के कपड़े सादे, लेकर नए – नए वादे
नेता आ गए, नेता छा गए
बेशक अब भरवा लो भात, इनकी ऐसी ही है जात
जो ना बने टिकेट की बात, करते है ये भीतर की घात
नेता आ गए, नेता छा गए

कल तक अलग ही चेहरों में, रह्ते थे बस पहरों में
भगवान दिखता गैरों में, पड़ते है अब पैरों में
नेता आ गए, नेता छा गए

पाँच साल में बन गए सेठ, बाहर निकल रहा है पेट
वोटर को चढाए भेंट, खुल गए तिजोरिंयो के गेट
नेता आ गए, नेता छा गए

कल बिस्तर पर लेटी, आज वो बहन और बेटी
लेकर दारू की पेटी
नेता आ गए, नेता छा गए

रिटायर्मेन्ट

हमारे एक मित्र ने हमें पार्टी पर बुलाया,
पार्टी कारण अपना रिटायर्मेन्ट बताया,
तुरंत हमारे दिमाग में एक कीड़ा कुलबुलाया,
नौकरी करके आप वर्षो तक सभी सुख सुविधाएं तजते रहे,
पर क्या कर्म को, आज तक अपनी, सिर्फ मजबूरी समझते रहे,
कि जिसकी समाप्ति पर नाचें कूदें जश्न मनाएं,
ढेर सारा पैसा मिला उसे फिजूलखर्ची में उड़ांए,

आज तक ये किसी ने नही कहा होगा,
मुझसे हुए रिक्त स्थान को मत भरो,
तनख्वाह से रिटायर भले ही कर दो
काम से रिटायर मत करो,

काम से रिटायर होने का जश्न मनाना,
इस बात का द्योतक है,
हम अपने काम से डर रहे हैं,
हमारे बच्चे, हमारे रिटायर होने की प्रतीक्षा कर रहे है,

कब हम रिटायर हो, उन्हे मिले रिटायर्मेंट के पैसे इस्तेमाल करने का मौका,
फिर एक पार्टी होगी, जश्न होगा, कब तक देते रहेंगे, हम स्वयं को धोका,
क्योकि एक दिन हमारे जीवन में भी आएगा यही मौका ,
चाहे बच्चे की पैदाइश हो अथवा जन्म दिन ,
विवाह की वर्षगांठ या मरण दिन,
इंसान पार्टियों की भीड़ में खो गया है,
पार्टी खुशी का इजहार नहीं, स्टेटस सिंबल हो गया है ॥

नई क्रान्ति

देश में फैले अंधियारों को अब तो दूर भगाओ,
फिर से अपने भारत में कोई नई क्रान्ति लाओ,
आजादी राजनीति में रह कर लेते रहे मजा,
उनके दुष्कर्मो की जनता भोग रही है आज सजा,

बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से खाओगे,
अब भी जो तुम ना समझे तो बाद में फिर पछताओंगे,
आजादी के सपनों को अब कर साकार दिखाओं,
फिर से अपने भारत में कोई नई क्रान्ति लाओ,

भ्रष्टाचार ने पूरे विश्व में सबसे ऊपर नाम किया,
स्विस बैंक में खाते खुलवाने का ब तक काम किया,
मानव पशु में फर्क नही है जग को ये बतलाने दो,
गऊवो को तुम देते रोटी उनको चारा खाने दो,

फैला भ्रष्टाचार देश में जड़ से इसे मिटाओं,
फिर से अपने भारत में कोई नई क्रान्ति लाओं,
नमक करा के गायब सारा जो मंहगाई लाएंगे,
ऐसे ओछे हथकंडो से सफल नही हो पाएंगें,

खादी स्वेत धारण करते धंधे उनके काले है,
जिनकों अब तक गगा समझा, निकले गंदे नाले है,
समझों जनता, चालों को अब ना धोखा खाओ,
फिर से अपने भारत में कोई नई क्रान्ति लाओ,

वंदे मातरम भारत में है अब जिनको स्वीकार नही
भारत माता उन दुष्टो का ढोएगी अब भार नही
माता तो केवल माता है क्या तेरी क्या मेरी है,
दुष्टो की संगत ने उनकी कैसी बुद्धि फेरी है,
माता जीवनदाता को अंतर्मन से अपनाओ,
फिर से अपने भारत में कोई नई क्रान्ति लाओ ॥

नेता बनाम डाक्टर

मैंने एक नेता से पूछा
डाक्टर साहब कैसे हो
तोंद बढती ही जा रही है
आदमी हो या भैंसे हो
सुनते ही नेता अकड़ गया
पारा सातवें आसमान पर चढ गया
बोला तूमने तो मेरी इज्जत का किला ही ढह दिया
एक अनपढ अंगूठा छाप को डाक्टर कैसे कह दिया
मैंने कहा नेताजी गुस्से को खत्म करो
कुछ तो समझने का प्रयत्न करो
डाक्टर कहकर तो मैंने तुम्हारी कीमत चढा दी
समाज में ओर भी इज्जत बढा दी
वह बोला रसिक भाई
लगता है तुम्हारी बुद्धि हो गई है जाम
भला एक नेता का इज्जत से क्या काम
राजनीति के इस अखाड़े में
एक आध व्यक्ति ही सच्चा है
इसलिए यदि इज्जत की बात को
भूल ही जाओ तो अच्छा है
ओर सीधे सीधे ये बताओ
कि भले ही तू कवि है
ओर समाज में तेरी भी मेरी तरह
अच्छी छवि है
ओर आपको है कुछ भी कहने की आजादी
लेकिन क्या सोचकर दे दी
मुझ जैसे अनपढ गंवार को डाक्टर की उपाधि
मैंने कहा नेताजी आप पांच साल तक
कुर्सी का मजा लेते रहे
ओर जनता को वायदों की गोली देते रहे
मीठी मीठी गोली वो भी बिना पैसे
इसीलिए आप मुझे दिखाई दिए
सरकारी डाक्टर के जैसे
मैं तो कवि हूँ कवि ही रहूँगा
लेकिन जब तक आप वायदे पूरे नहीं करेंगे
आपको डाक्टर ही कहूँगा
आपको डाक्टर ही कहूँगा

Sunday, August 9, 2009

मच्छर

हे मच्छर पहले तो तुम हमें, सिर्फ रात को काटने थे,
वो भी मोटे ताजे, आदमियों को छाटते थे,
लेकिन अब सबकों, एक ही कैटगरी में बाँटते हों,
शर्म नही आती, दिन में भी काटते हो,

मच्छर बोला हम खून को किसी ब्लड बैंक में,
स्टोर करने के लिए थोड़े ले जाते है,
ताजा कमाते है, ताजा खाते है,
हमारा एक—एक साथी, पूरी मेहनत से आगे बढता है,
महंगाई आसमान छू रही है, इसलिए दिन रात काम करना पड़ता है,

वैसे तो हमारे लिए इंसान की तरह बनाया कोई, बोर्डर नही है,
काटने के लिए सारा जहाँ है,
लेकिन अब आदमी में चूसने के लिए, खून बचा ही कहा है,
अरे इंसान तो मच्छर से भी, गई गुजरी जिन्दगी जी रहा है।
क्योकि आज आदमी ही आदमी का, खून पी रहा है,

मच्छर यदि अपनी पूरी तीन दिन की, जिन्दगी में प्यार छोड़ आतंकवाद में खो जाए,
तो मच्छर का तो समझो, अस्तित्व ही समाप्त हो जाए,
वैसे भी अब तो मानव हमसे डरकर, अपनी पूरी हिफाजत से सोते है,
और गुड नाईट, आल आऊट जैसे लोशन, हमारी जान के दुश्मन होते है,
अब तो हमें थोड़ा – थोड़ा, जहरीले पदार्थ खाने का अभ्यास हो गया है,
और डी॰डी॰टी॰ खा—खाकर हमारे अन्दर,
रोग—प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो गया है,

अब ये मत समझना, कि इसे तो ऐसे खा जायेंगे जैसे टाँफी है,
हमारा एक साथी, तुम्हारे सारे मन्त्रियों को निपटाने के लिए काफी है,

उसकी बात सुनकर हमें तो सिर्फ, इस बात पर मलाल आया,
कि एक मच्छर पूरे मन्त्रिमण्डल को, निपटाने की बात करता है,
लेकिन पूरा मन्त्रिमण्डल मिलकर, एक मच्छर जैसे पाकिस्तान को नही निपटा पाया ॥

Saturday, August 8, 2009

नव सम्वत

नये साल पर हंसते गाते
होटल क्लब में शोर मचाते
नव सम्वत लगता है ऐसे
जैसे हम कोई श्राद्ध मनाते
नये साल से नही ग्लानि
पर सम्वत को मान मिले
नये साल जितना ही इसको
कम से कम सम्मान मिले
हैलो हाय ही याद है अब तो
भूल गये चन्दन का टीका
नव सम्वत क्यों पड़ गया फ़ीका

छोटा सा बस एक उत्सव कर
खुशियों से हम फूल गये
अंग्रेजी चक्कर में पड़कर
संस्कृति को भूल गये
पहले तो चलता था देशी
फिर घुस आए यहाँ विदेशी
देख पराई चमक दमक को
पीछे छूट गया स्वदेशी
टूटा बिल्ली भागों छींका
नव सम्वत क्यों पड़ गया फ़ीका

हो चाहे कोई भी मौका
जन्मदिवस या विवाह सगाई
छोड़ के धोती कुर्ता खादी
कोट पैंट और लगती टाई
दो सौ वर्ष की गुलामी ने
लाखों वर्ष की रीत मिटाई
डाइनिंग पर लगता है खाना
फोटो में बस दिखे चटाई
सम्वत से है शान राष्ट्र की
अंग्रजी जंजाल है जी का
नव सम्वत क्यों पड़ गया फ़ीका

नया साल है मुम्बई पूना
नव सम्वत क्यों लगता सूना
आओ मिलकर इसे मनाएं
घर घर मंगल दीप जलाएं
तोड़ गुलामी की जंजीरें
दूर करें इंग्लिश परछाई
एक दूजे को गले लगाकर
नव सम्वत की दो बधाई
दीया जलाएँ देशी घी का
नव सम्वत क्यों पड़ गया फ़ीका

रावण

एक बार मै रामलीला कमेटी का प्रेसीडेन्ट बन गया
और रावण का पुतला खरीदने एक दुकान पर जाकर तन गया
मैने उसे रावण खरीदने की फरमाइश बताई
बोला देखने में तो खुद ही रावण लगते हो भाई
मैने कहा जबान संभाल के बात कर
तू क्या कहना चाहता है कि मै
घर की घर में दशहरा मना लूं
रावण जैसा हूं तो खुद को जला लूँ
अरे जब तेरा रावण ही नही बिकेगा तो तू क्या करेगा
इतनी मंहगाई में भूख से तिल—तिल मरेगा
रावण तो कलयुग का सुपरस्टार है
लाखों लोगों को मिलता इससे रोजगार है
देश में हर साल लाखों रावणों में अरबों रुपया फूंका जाता है
लेकिन क्या वास्तव में एक भी रावण मर पाता है
और तू कौन सा राम के वंशज का लगता है
बोल लगता है क्या मेरा तो नाम ही राम भरोसे है
राम भरोसे खाता हूं राम भरोसे गाता हूं
राम भरोसे पीता हूं राम भरोसे जीता हूं
आपकों मेरे नाम की व्याख्या इतनी खल रही है
हमारे देश की तो नैया ही राम भरोसे चल रही है
मैने कहा वाह रे कलयुगी
राम का नाम और रावण बेचने का काम
बोला हम कमाते है इससे दाम
वरना अपना तो जीवन ही हो जाए जाम
मैने कहा वाह रे पेट की आग
तेरे आगे आज सारे ही सिद्धांत सो गये है
क्योंकि आज रावण ही, राम की रोजी रोटी के साधन हो गये है
रावण तो दिन पर दिन बढने वाली एक लम्बी रेखा है
और राम की दुर्गति होते तो आज सारे देश ने देखा है
रामलीलाओं में बड़े से बड़ा रावण बनाने की होड़ लगती है
जितना बड़ा रावण उतनी ही रामलीला बेजोड़ लगती है
रावण का कद उठते उठते 9 फुट से 100 फुट तक बढा है
राम पहले भी 6 फुट का था, और आज भी 6 फुट का ही खड़ा है

अग्रसेन वन्दना

अग्रसेन जयंती पर करते पूर्वजों को याद,
सारे अग्रवाल समाज का मेरा धन्यवाद,
मेरा धन्यवाद फले-फूले अग्रसेन का वंश,
छल कपट और मोह माया का रहे ना कोई अंश,

अग्रसेन जयंती मनाता , पूरा देश ये आज,
जय हो, जय हो, जय हो, जय हो, अग्रसेन महाराज
अग्रसेन जी ने समाज को, दिया नया आकार,
आओं करें हम सब मिलकर, उनका सपना साकार,
एक रुपया एक ईंट से सबकों किया समान,
कम ही होते अग्रसेन जी, जैसे पुरुष महान ॥
हर जाति और धर्म को इसने अपने गले लगाया
अटठारह गोत्रों में बांट के, अपना धर्म फैलाया
रक्षा की है सदा उसी की, जो भी शरण में आया
भाईचारे और सदभावना का, हमेशा पाठ पढाया
हर क्षेत्र को दिया है इसने, दिल खोलकर दान
कम ही होते हैं अग्रसेन जी, जैसे पुरुष महान ॥

अपने सतकर्मो के कारण ही तो फैला नाम
पूरे विश्व में आज आपका फैला है व्यापार
लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा है माटी से प्यार
हंसते हंसते देश की खातिर, दे दें अपनी जान
कम ही होते अग्रसेन जी, जैसे पुरुष महान
एक प्रतिज्ञा आज करें हम, दिलों पे सबके राज करें हम
हम अपनी भक्ति पहचाने, सबकों अपना भाई मानें
अग्रसेन जी का करता है, पूरा विश्व सम्मान
कम ही होते अग्रसेन जी, जैसे पुरुष महान
विस्फोटों से शोभा यात्रा, रुकी न रुक पाएगी
जाने वालों की कुर्बानी, रंग नया लाएगी
अत्याचारी अन्यायी ही सदा पिटा करते है
बम के विस्फोटों से ना कभी, धर्म मिटा करते है
श्री अग्रसेन की शोभा यात्रा,देखे सारा जहान,
कम ही होते अग्रसेन जी, जैसे पुरुष महान

सरस्वती वन्दना

माँ सरस्वती माँ सरस्वती
शब्दो को दो मेरी गति

माँ ज्ञान का भण्डार तू
माँ प्यार का अवतार तू
तू भावना की खान है
तेरी कृपा वरदान है
हो कामना ये बलवती
माँ सरस्वती माँ सरस्वती

हम पर कृपा रखना सदा
गलती यदि हो यदा कदा
तो पुत्र अपना जानकर
तो भक्त अपना मानकर
कर दो क्षमा मेरी मति
माँ सरस्वती माँ सरस्वती

अपनी दया का दान दो
शब्दार्थ का शुभ ज्ञान दो
अच्छी बुरी पहचान दो
हमको अनोखी तान दो
इच्छा सदा हो बलवती
माँ सरस्वती माँ सरस्वती

हमदर्द हों बीमार के
शब्द हों बीमार के
जग को ना हो हमसे क्षति
कविता सदा हो रसवती
माँ सरस्वती माँ सरस्वती
माँ सरस्वती माँ सरस्वती