Tuesday, August 11, 2009

मंचीय चुटकुले

हमने एक दुकान पर विज्ञापन पढा कि,
हर प्रकार के मंचीय चुटकुलों के लिए आइए,
सौ रुपये प्रति चुटकुला ले जाइए,
तालियां ना बजने पर रुपये वापस की गरंटी,
बीस प्रतिशत स्पेशल फैस्टीवल डिस्काउंट,
दस चुटकले लेने पर एक चुटकुला फ्री,

मैने कहा भैया, चुटकुले लिखने का काम तो बड़ा सीधा सादा है,
फिर इसकी किमत क्यूं इतनी ज्यादा है,
वो बोला भाई साहब आजकल हमारा धंधा खूब पल रहा है,
चुटकलों पर भी रोजमर्रा की चीजों की तरह भारी ब्लैक चल रहा है,
सैकड़ो की तादात में कवि आते है, और चुटकुलें ले जाते है,
वो इन चुटकुलों स्से सैकड़ो मंचों पर, हजारों के हिसाब से लाखों कमाते है,
तो उन्हे सौ रुपये मे भी सस्ते नजर आते है,
हमारा एक-एक चुटकुला साल भर, अनेक मंचों पर खूब पिलेगा
सौ लगाकर लाखों कमाने का इअससे बढिया बिजनेस, तुम्हे कही नही मिलेगा,

इसलिए रसिक भाई तुम भी यही करों
महंगाई के इस दौर में दो चार चुटकुले ले जाकर,
खुद का और बाल बच्चो का पेट भरों,
इसलिए कविता छोड़ो, चुटकुलों से नाता जोड़ो,

मैने कहा भैया
एक रुपये के अखबार में तो,
दस बारह चुटकले पढने का मजा आता है,
अगर मांग कर पढों तो वो रुपया भी बच जाता है,

वो बोला भाई साहब, हमारे ये चुटकले तुम्हे जो साधारण नजर आते है,
वास्तव में बड़े बड़े कवि सम्मेलनों की शोभा बढाते है,
देश के कोने कोने में कवियों के माध्यम से जाते है,
और हजारों की संख्या में तालियाँ बजवाते है,
आज ताली ही कविता की शान है,
जितनी ज्यादा ताली उतनी ही कविता में जान है,
तालियां आज कविता की क्वालिटी की छवि है,
जितनी ज्यादा तालियां उतना बड़ा कवि है,

भला साहित्य से भी कभी किसी का पेट भरा है,
इतिहास खोल कर देख लो,
साहित्यकार हमेषा भूखा मरा है,
मगर खुद मर के भी भूखे, की साहित्य की सेवा,
आभावों में जिया मिली नही कभी मेवा,

फैलाओ साहित्य सृजन से कवियों, पुरी दुनियां में तुम ज्योति,
चुटकले चुटकले ही होते है, कभी कविता नही होती,
तभी मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आई,
हे चुटकले बेचने वाले भाई, कहा तो तुने बिल्कुल सही है,
दुनिया का दस्तुर यही है, जीते इंसान रोटी के लिए तरसता है,
और मरने के बाद, उसकी चिता पर देशी घी बरसता है
और मरने के बाद, उसकी चिता पर देशी घी बरसता है

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